लफ़्ज़ों की परवाज़
मुझ पर जो गुज़री आज तलक उन सारी गुप्त व्यथाओं को शब्दों में अंकित करता हूँ अपनी सारी पीड़ाओं को
Sunday 15 June 2014
मां
परिपूर्ण तुम्हीं, सम्पूर्ण तुम्हीं
तुम पूर्ण सृष्टि की सुंदरता
अद्भुत खुशबू बसती तुममें
वाणी से अमृत है झरता
कितनी सुंदर कितनी शीतल
वट वृक्ष तुम्हीं बन जाती हो
जब सारे रस्ते बंद मिलें
तब नजर तुम्हीं बस आती हो।।
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